वॉशिंगटन: अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने DEI (विविधता, समानता और समावेश) प्रोग्राम पर रोक लगा दी है। यह प्रोग्राम नौकरी देने में होने वाले किसी भी प्रकार के भेदभाव को रोकता था।
इसकी वजह से एक लाख भारतीयों की नौकरी पर खतरा मंडरा रहा है। अमेरिका में कुल 32 लाख फेडरल (केंद्रीय) कर्मचारी हैं। इनमें से 8 लाख कर्मचारी DEI प्रोग्राम के तहत काम करते हैं। इनमें से लगभग एक लाख भारतीय हैं। इसमें अमेरिकी नागरिकता प्राप्त और वर्क वीजा जैसे H-1B वीजा पर काम करने वाले शामिल हैं।
ट्रम्प DEI खत्म कर गोरे लोगों के लिए सरकारी और प्राइवेट सेक्टर नौकरियों में ज्यादा अवसर बढ़ाना चाहते हैं। अमेरिका की 35 करोड़ की आबादी में से 20 करोड़ गोरे लोग हैं। इनमें से ज्यादातर को ट्रम्प का कोर वोट बैंक माना जाता है। ट्रम्प ने इलेक्शन कैंपेन के दौरान DIE बंद करने का वादा किया था।
DEI में भर्तियां रोकीं, कर्मचारियों को पेड लीव पर भेजा
अमेरिकी सरकार ने DEI में भर्तियां रोककर यहां के कर्मचारियों को 31 जनवरी तक पेड लीव पर भेज दिया गया है। राज्यों में भी DEI के दफ्तरों को बंद करने के आदेश दिए गए हैं। 1 फरवरी को इससे जुड़े कर्मचारियों के भविष्य के बारे में फैसला किया जाएगा। सभी फेडरल दफ्तरों से इस प्रोग्राम को लेकर रिपोर्ट भी मांगी गई है।
1960 से सभी वर्गों को रोजगार, शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में समान अवसर देने के लिए यह प्रोग्राम शुरू किया गया था। ये तत्कालीन राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी और मार्टिन लूथर किंग जूनियर के आदर्शों से प्रेरित है।

मार्टिन लूथर किंग जूनियर एक पादरी, आंदोलनकारी एवं अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकारों के संघर्ष के प्रमुख नेता थे।
क्यों लिया DEI प्रोग्राम बंद करने का फैसला
DEI के तहत अमेरिका का जस्टिस डिपार्टमेंट यह देखता है कि लोगों को नौकरी पर रखने के लिए किस प्रक्रिया का पालन किया है और इसमें कहीं भेदभाव तो नहीं किया जा रहा है। कुछ लोगों का आरोप है कि इस मुद्दे की आड़ में गोरे लोगों के अधिकारों की अनदेखी की जाती है। इसके अलावा ट्रम्प DEI खत्म कर गोरे लोगों के लिए सरकारी और प्राइवेट सेक्टर नौकरियों में ज्यादा अवसर बढ़ाना चाहते हैं।
अमेरिका की 35 करोड़ की आबादी में से 20 करोड़ गोरे लोग हैं। इनमें से ज्यादातर को ट्रम्प का कोर वोट बैंक माना जाता है है। ये DEI प्रोग्राम का विरोध करते हैं। सरकारी और प्राइवेट सेक्टर में 12 करोड़ गोरे लोग काम करते हैं। ट्रम्प कहना है कि वो DEI खत्म करके मेरिट के आधार पर नौकरी देंगे।

अमेरिका में ब्लैक लोगों के साथ भेदभाव लंबे समय से विवाद का मुद्दा रहा है। हालांकि कुछ लोगों का आरोप है कि इसकी आड़ में गोरे लोगों के अधिकारों की अनदेखी की जाती है।
कमजोर समुदायों के खिलाफ बड़ सकता है पूर्वाग्रह
रॉयटर्स के मुताबिक इस प्रोग्राम का उद्देश्य महिला, अश्वेत, अल्पसंख्यक, LGBTQ+ और अन्य कम प्रतिनिधित्व वाले ग्रुप्स के लिए अवसरों को बढ़ावा देना है। ट्रम्प के इस फैसले से इन समुदायों के खिलाफ पूर्वाग्रह और भेदभाव खत्म करने के लिए शुरू की गई मुहीम मुश्किल में पड़ सकती है।
अमेरिका में प्राइवेट सेक्टर को भी डीईआई प्रोग्राम में जॉब देना अनिवार्य है। ट्रम्प के आदेश के बाद मेटा, बोइंग, अमेजन, वॉलमार्ट, टारगेट, फोर्ड, मोलसन, हार्ले डेविडसन और मैकडोनाल्ड ने DEI बंद करने का ऐलान किया है।

टिम कुक की एपल और रिटेल स्टोर कोस्टको जैसी दो बड़ी कंपनियों ने ही डीईआई जारी रखने की बात कही है।
प्राइवेट सेक्टर पर भी ट्रम्प का दबाव
ट्रम्प प्राइवेट सेक्टर भी दबाव बना रहे है कि वो अलग-अलग समूहों लोगों को ध्यान में रखकर की गई जॉइनिंग की समीक्षा करें। वहीं, लेबर डिपार्टमेंट के मुताबिक ट्रम्प ने 1965 में लिंडन जॉनसन की तरफ से जारी किए गए उस आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि फेडरल कॉन्ट्रैक्ट में नस्ल, रंग, धर्म, जेंडर और राष्ट्रीयता के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।

(Bureau Chief, Korba)