Sunday, October 5, 2025

नई दिल्ली: भारत बोला- सऊदी हमसे अपने रिश्तों का ध्यान रखेगा, पाकिस्तान की आतंकियों से साठगांठ; दो दिन पहले सऊदी-PAK में डिफेंस समझौता हुआ

नई दिल्ली: भारत ने शुक्रवार को कहा कि हमें उम्मीद है कि सऊदी अरब हमारे साथ अपने रिश्तों को ध्यान रखेगा। पाकिस्तान की आतंकियों से साठगांठ है।

भारत और सऊदी अरब के बीच पिछले कुछ सालों में रणनीतिक साझेदारी बहुत मजबूत हुई है। हम उम्मीद करते हैं कि यह साझेदारी आपसी हितों और संवेदनशीलता का ध्यान रखेगी।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने साप्ताहिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह प्रतिक्रिया पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच 17 सितंबर को हुए रक्षा समझौते पर व्यक्त की। इसमें एक देश पर हमला दूसरे पर हमला माना जाएगा।

भारत बोला- पाकिस्तान और आतंकियों में गठजोड़

जायसवाल ने आतंकी संगठन जैश और लश्कर के साथ पाकिस्तान के संबंधों पर कहा कि दुनिया पाकिस्तानी सेना और आतंकवादियों की साठगांठ अच्छे से जानती है।

जायसवाल ने जोर देकर कहा-

आतंकवाद के मुद्दे पर भारत का स्टैंड क्लियर है। सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ ग्लोबल समुदाय को एकजुट होकर कठोर कदम उठाने होंगे। हम दुनिया से अपील करते हैं कि आतंकवाद से निपटने के लिए अपनी कोशिशों को और तेज किया जाए।

ईरान के चाबहार पोर्ट पर भी बयान दिया

अमेरिका ने हाल में ही ईरान के चाबहार पोर्ट को मिली छूट खत्म कर दी है। 29 सितंबर से इससे जुड़ी कंपनियों पर जुर्माना लगेगा। यह पोर्ट 10 साल के लिए भारत के पास लीज पर है।

रणधीर जायसवाल ने इसे लेकर कहा कि

हमने चाबहार पोर्ट के लिए प्रतिबंधों में छूट रद्द करने के मामले अमेरिकी प्रेस रिलीज देखी है। हम फिलहाल भारत पर इसके असर की जांच कर रहे हैं। चाबहार को 2018 में अफगानिस्तान की मदद और विकास के लिए छूट मिली थी। भारत इस बंदरगाह को अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया तक पहुंचने के लिए इस्तेमाल करता है, ताकि पाकिस्तान से न गुजरना पड़े।

कनाडा से भारतीय कॉन्सुलेट की सुरक्षा तय करने को कहा

खालिस्तानी संगठन सिख फॉर जस्टिस ने कुछ दिन पहले कनाडा के वैंकूवर में भारतीय कॉन्सुलेट पर घेराव की धमकी दी थी। इसे लेकर भारत ने कनाडा सरकार से कॉन्सुलेट सुरक्षा तय करने की मांग की है।जायसवाल ने कहा कि भारतीय दूतावासों की सुरक्षा की जिम्मेदारी कनाडा सरकार की है।

जायसवाल ने कहा- जब भी कोई सुरक्षा से जुड़ी चिंता होती है, हम उसे कनाडा के अधिकारियों के सामने उठाते हैं। हाल ही में कनाडा के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) ने हमारे NSA से बात की। यह दोनों देशों के बीच रेगुलर सुरक्षा वार्ता का हिस्सा थी।

पाकिस्तान ने इस्लामी देशों को NATO जैसी जॉइंट फोर्स बनाने का सुझाव दिया था

सऊदी प्रिंस सलमान के साथ शहबाज शरीफ और पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसीम मुनीर।

सऊदी प्रिंस सलमान के साथ शहबाज शरीफ और पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसीम मुनीर।

इजराइल ने 9 सितंबर को कतर की राजधानी दोहा में हमास चीफ खलील अल-हय्या को निशाना बनाकर हमला किया था। इस हमले में अल-हय्या बच तो गया था, लेकिन 6 अन्य लोगों की मौत हो गई थी।

इसके बाद 14 सितंबर को दोहा में मुस्लिम देशों के कई नेता इजराइल के खिलाफ एक खास बैठक के लिए इकट्ठा हुए थे। यहां पाकिस्तान ने सभी इस्लामी देशों को NATO जैसी जॉइंट फोर्स बनाने का सुझाव दिया था।

पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री मोहम्मद इशाक डार ने एक जॉइंट डिफेंस फोर्स बनाने की संभावना का जिक्र करते हुए कहा था कि न्यूक्लियर पावर पाकिस्तान इस्लामिक समुदाय (उम्माह) के साथ अपनी जिम्मेदारी निभाएगा।

रविवार को इस्लामी देशों के नेताओं ने इजराइल के खिलाफ बंद कमरे में मीटिंग की।

रविवार को इस्लामी देशों के नेताओं ने इजराइल के खिलाफ बंद कमरे में मीटिंग की।

एक्सपर्ट बोले- यह समझौता औपचारिक ‘संधि’ नहीं है

अफगानिस्तान और इराक में अमेरिका के राजदूत रह चुके जलमय खलीलजाद ने भी इस समझौते पर बयान दिया है। उन्होंने कहा कि यह समझौता हालांकि औपचारिक ‘संधि’ नहीं है, लेकिन इसकी गंभीरता को देखते हुए यह एक बड़ी रणनीतिक साझेदारी मानी जा रही है।

खलीलजाद ने आगे कहा कि क्या यह समझौता कतर में इजराइल हमले के जवाब में किया गया है? या ये लंबे समय से चली आ रही अफवाहों की पुष्टि करता है कि सऊदी अरब, पाकिस्तान के एटमी हथियार प्रोग्राम का अघोषित सहयोगी रहा है।

खलीलजाद ने पूछा कि क्या इस समझौते में सीक्रेट क्लॉज हैं, अगर हां, तो वे क्या हैं? क्या ये समझौता बताता है कि सऊदी अरब अब अमेरिका की सुरक्षा गारंटी पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहता है।

उन्होंने बताया कि पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार और ऐसे मिसाइल सिस्टम हैं जो पूरे मिडिल ईस्ट और इजराइल तक मार कर सकते हैं। कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि पाकिस्तान ऐसे हथियार भी डेवलप कर रहा है जो अमेरिका तक पहुंच सकते हैं।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता बोले- भारत पर असर की जांच करेंगे

सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच रक्षा समझौते पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा

यह समझौता दोनों देशों के बीच पहले से मौजूद संबंधों को औपचारिक रूप देता है। इससे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता पर क्या असर पड़ेगा, इसकी जांच की जाएगी। भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और हितों की रक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।

अमेरिका के साथ भी पाकिस्तान ने सऊदी जैसा रक्षा समझौता किया था

पाकिस्तान ने सऊदी जैसा रक्षा समझौता अमेरिका के भी साथ किया था। 1979 में ये समझौता टूट गया था। उससे पहले भारत पाकिस्तान के बीच 2 जंग हुईं लेकिन एक में भी अमेरिका ने उसकी सीधे मदद नहीं की।

पाकिस्तान-अमेरिका का पुराना रक्षा समझौता: 1950 में कोल्ड वॉर के दौरान, अमेरिका ने सोवियत संघ के विस्तार को रोकने के लिए दक्षिण एशिया में सहयोगियों की तलाश की। इस समय पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ सैन्य गठबंधन को अपनाया।

  • म्यूचुअल डिफेंस असिस्टेंस एग्रीमेंट (MDAA), 19 मई 1954: यह पाकिस्तान और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय समझौता था। इसमें म्यूचुअल डिफेंस के नियम थे, यानी दोनों देश एक-दूसरे को सैन्य सहायता (हथियार, प्रशिक्षण, उपकरण) देंगे। अमेरिका ने पाकिस्तान को सामूहिक सुरक्षा प्रयासों (जैसे सामान्य जंग में) में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया, जिसमें पाकिस्तान के रिसोर्स, सैनिक और रणनीतिक सुविधाएं शामिल थीं। यह समझौता अमेरिका के म्यूचुअल डिफेंस असिस्टेंस एक्ट (1949) पर बेस्ड था, जो यूरोप और एशिया में सहयोगियों को सैन्य सहायता देता था।
  • SEATO (1954) और CENTO (1955): MDAA के बाद पाकिस्तान ने साउथ ईस्ट एशिया ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (SEATO) और बगदाद पैक्ट (बाद में CENTO) में शामिल होकर इसे मजबूत किया। इन संगठनों के अनुच्छेदों में किसी एक पर हमले में सामूहिक प्रतिक्रिया का प्रावधान था, यानी एक सदस्य पर आक्रमण को सभी पर आक्रमण माना जाएगा (नाटो जैसा)। अमेरिका ने इनके तहत पाकिस्तान को 7 हजार करोड़ से ज्यादा की सैन्य सहायता दी, जिसमें हथियार और प्रशिक्षण शामिल थे।

1979 में समझौता क्यों टूटा?

CENTO का अंत 1979 में हुआ, हालांकि MDAA द्विपक्षीय था, लेकिन CENTO के ढांचे से जुड़ा था।

  • ईरान की क्रांति (1979): ईरान के शाह का पतन और इस्लामी क्रांति के बाद ईरान ने CENTO से 15 मार्च 1979 को वापसी की। ईरान CENTO का प्रमुख सदस्य था, इसलिए संगठन कमजोर हो गया।
  • पाकिस्तान की वापसी: 12 मार्च 1979 को पाकिस्तान ने भी CENTO छोड़ दिया। इसके कारण थे सोवियत आक्रमण, अफगानिस्तान (दिसंबर 1979) के बाद पाकिस्तान की गुटनिरपेक्ष नीति और अमेरिका के साथ संबंधों में उतार-चढ़ाव (जैसे 1979 में पाकिस्तान के न्यूक्लियर प्रोग्राम पर अमेरिकी प्रतिबंध)।
  • अमेरिकी सहायता पर प्रतिबंध: जिमी कार्टर प्रशासन ने पाकिस्तान के गुप्त यूरेनियम एनरिचमेंट (न्यूक्लियर हथियार कार्यक्रम) पर 1979 में सैन्य सहायता रोक दी। इससे गठबंधन प्रभावी रूप से खत्म हो गया।

समझौते के बाद भी अमेरिका ने मदद नहीं दी

CENTO 16 मार्च 1979 को पूरी तरह खत्म हुआ। हालांकि, अमेरिका-पाकिस्तान संबंध बाद में अफगान युद्ध (1979 के बाद) में फिर मजबूत हुए, लेकिन पुराना म्यूचुअल डिफेंस फ्रेमवर्क टूट चुका था।

इससे पहले 1947, 1965 और 1971 में भारत पाक जंग में भी में अमेरिका ने पाकिस्तान की सीधी सैन्य मदद नहीं की, भले ही म्यूचुअल डिफेंस प्रावधान थे। अमेरिका ने इन जंग को क्षेत्रीय विवाद माना, न कि गठबंधन के तहत सामूहिक रक्षा का मामला।

MDAA/SEATO/CENTO खासतौर पर सोवियत/कम्युनिस्ट खतरों के खिलाफ थे, न कि भारत किसी और गुट के खिलाफ। इसलिए, पाकिस्तान को अपेक्षित मदद नहीं मिली, जिससे गठबंधन पर सवाल उठे।



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