Sunday, November 24, 2024
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अपनों के धोखे का शिकार हुए साय… प्रदेश के पहले नेता प्रतिपक्ष रहे, आदिवासी CM का था सपना, खास वजह से नमक नहीं खाते साय

रायपुर: नंदकुमार साय…. प्रदेश में आदिवासी नेता के रूप में ये नाम इज्जत से लिया जाता रहा। विधायक, सांसद और प्रदेश के पहले नेता प्रतिपक्ष रहे। बाद में धीरे-धीरे इनके अपनों ने ही इनका कद कम करना शुरू किया। राजनीति में सिर्फ इज्जत ही काफी नहीं, पद मायने रखता है। पिछले लंबे वक्त से पद के मामले में नंदकुमार साय भाजपा में उपेक्षित चल रहे थे। इनके अपने ही संगठन के नेताओं ने इनसे किनारा किया और धीरे-धीरे हालात इतने खराब हुए कि साय ने अब भाजपा से इस्तीफा दे दिया। वो पार्टी जिसमें छात्र राजनीति से लेकर CM पद की दावेदारी तक बात बढ़ी, उसे साय छोड़ चुके हैं।

नंद कुमार साय की एक पुरानी तस्वीर।

नंद कुमार साय की एक पुरानी तस्वीर।

पार्टी की कमियों को मीडिया के सामने गिनाना, इशारों में बड़े नेताओं की खामियों पर बात करना और सबसे बड़ी बात हमेशा आदिवासी CM पद के हिमायती बने रहने की वजह से साय हमेशा दिग्गजों की आंख में चुभते रहे। कभी इन्हें बैठकाें में नहीं बुलाया गया तो कभी पार्टी संबंधी फैसलों की सूचना देना बंद कर दिया गया, इस तरह से हौले-हौले साय को भी मजबूर किया गया कि वो भाजपा को टाटा-बाय, बाय कह दें।

आयोग के प्रमुख रहते होती थी PM मोदी से भी मुलाकात।

आयोग के प्रमुख रहते होती थी PM मोदी से भी मुलाकात।

कैसे किनारे कर दिए गए साय
पहले लोकसभा के लिए टिकट से वंचित करने, फिर राज्यसभा के लिए रिपीट न करने और फिर कोर ग्रुप से भी हटाए जाने से साय नाराज चल रहे थे। मगर फिर राष्ट्रीय जनजाति आयोग का प्रमुख बनाया गया, यह भी आगामी चुनावों की वजह से एक औपचारिकता साबित हुई। इसके बाद प्रदेश भाजपा में अहम फैसले साय के बिना ही होने लगे, एक बड़ी बैठक में आमंत्रित तक नही किए जाने के बाद दैनिक भास्कर से साय ने कहा था- पता नहीं ये लोग क्या चाहते हैं। कई लोग यह संदेश देने लगे थे कि पार्टी में अब साय के दिन लद गए हैं।

पार्टी का नाम लिए बिना अकेले धरना दिया था।

पार्टी का नाम लिए बिना अकेले धरना दिया था।

आरक्षण के बड़े मुद्दे पर साय ने दिसंबर-जनवरी में अकेले ही धरने पर बैठने का फैसला किया। पार्टी के नाम और बैनर का प्रयाेग नहीं किया। मीडिया में चर्चा हुई तो भाजपा के कुछ नेता धरने में कुछ देर के लिए तो शामिल हुए, मगर रायपुर के देवेंद्र नगर चौक के पास देर शामों तक अकेले आदिवासी गीत सुनते साय धरने पर बैठे रहे, बिना कुछ खाए पीए। ये धरना कुछ दिनों बाद साय ने आदिवासी आरक्षण लागू करने की मांग के साथ समेट लिया था, साय ने दिखा दिया था कि उन्हें अपने सिद्धांत प्रिय हैं पार्टी चाहे कुछ करे न करे।

साय को CM फेस के तौर पर देखा जाता था।

साय को CM फेस के तौर पर देखा जाता था।

CM बन सकते थे साय
साय संस्कृत बोलते हैं, शास्त्रों वेदों का ज्ञान है, संविधान पर खूब किताबें पढ़ी हैं, आदिवासियों के लिए अच्छा साेचते हैं। यही वजह रही कि वो हमेशा इस वर्ग में बड़े नेता के रूप में देखे गए। 2003 में राज्य में पहले विधानसभा चुनाव में नंदकुमार साय बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदारों में से एक थे। उस समय कांग्रेस के मुख्यमंत्री अजीत जोगी और नंदकुमार साय के बीच तीखी नोंकझोंक होती थी।

राज्य गठन के बाद दिलीप सिंह जूदेव, रमेश बैंस और नंदकुमार साय ही बिरले नेता हैं जो पार्टी के ताकतवर नेता थे। कांग्रेस की सरकाई आई तो नेता प्रतिपक्ष साय बने। इसके बाद के चुनाव में तय माना जा रहा था कि नंदकुमार साय CM बन सकते हैं, वो खुद भी इसी तैयारी में थे। मगर राजनीति में हमेशा 2 और 2 चार नहीं हुए, समीकरण बदला और CM रमन सिंह बने, इसके बाद मुखर होकर आदिवासी CM की बात नंदकुमार साय कहते रहे और ये बड़ी वजह रही कि उन्हें किनारे किया गया।

आज भी गांव में खेती करते हैं साय।

आज भी गांव में खेती करते हैं साय।

नमक न खाने का दिलचस्प किस्सा

  • 70 के दशक में छात्र राजनीति में साय ने आदिवासी इलाकों में कई जन जागरण अभियान चलाए थे उनमें से एक शराबबंदी का आंदोलन भी रहा
  • आदिवासी समाज के लोगों में शराब की बुरी लत छुड़ाने के लिए एक बार उन्होंने हजारों किमी की पदयात्रा भी की थी।
  • एक जगह आदिवासियों ने ताना दिया, उनके लिए तो शराब वैसे ही है, जैसे खाने में नमक।
  • उन्होंने साय से कहा, यदि वह नमक छोड़ सकते हों तो वे शराब छोड़ देंगे। इस पर साय ने ‘हां’ कह दिया और वहीं से प्रण लिया कि वे नमक नहीं खाएंगे।
  • इस घटना के बाद आज तक साय ने नमक को हाथ नहीं लगाया है, उनके खाने में नमक नहीं होता।
साय को केंद्र में कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया था।

साय को केंद्र में कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया था।

साय का करियर

  • वे पहली बार 1977, फिर 1985 और 1998 में मध्य प्रदेश विधानसभा के सदस्य रह चुके हैं। साल 2000 में वे छत्तीसगढ़ विधानसभा के सदस्य बने और पहले विपक्ष के नेता बने थे।
  • साय 1989, 1996 और 2004 में लोकसभा सांसद भी रह चुके हैं। इसके साथ ही 2009 और 2010 में वह राज्यसभा के लिए चुने जा चुके हैं।
  • नंद कुमार अपने गृह गांव भगोरा में खुद के खेतों में हल चलाते हुए और बुबाई करते देखा जा सकता है।
  • इसके पीछे उनका तर्क है कि बचपन से खेती से जुड़े होने के कारण आज भी वे किसान ही हैं।
  • वह अविभाजित मध्यप्रदेश में बाद में छत्तीसगढ़ में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
  • कांग्रेस सरकार के समय वह छत्तीसगढ़ विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे हैं।
  • साय अब तक चार बार विधायक रहे। तीन बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा के सांसद रहे।
  • साय बेहद सादा जीवन जीते हैं। फ्लाइट से सफर करना जरूरी हो तो इकोनॉमी क्लास चुनते हैं।
  • उनका कहना है कि संसद का पैसा आदमी के टैक्स से आता है, उसे सोच-समझकर खर्च करना चाहिए।
  • एक किसान परिवार में 1 जनवरी 1946 में नंदकुमार साय का जन्म हुआ।
  • उन्होंने सरकारी नौकरी की तैयारी की और 1973 में नायब तहसीलदार के पद पर चयनित भी हुए लेकिन नौकरी पर नहीं गए।
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में नंदकुमार साय को 2017 में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था।

साय को जान से मारने की साजिश

  • साय जब राष्ट्रीय जनजाति आयोग के अध्यक्ष थे तो उनकी हत्या की प्लानिंग की बात सामने आई थी
  • – साय के करीबियों के मुताबिक आयोग के ड्राइवर चेतन शर्मा ने साय को बताया था कि आयोग के एक सीनियर अन्वेषण अफसर ने उन्हें (साय को) मारने का प्लान दिया है। इसके एवज में बड़ी रकम भी देने कहा है।
  • – उसने बताया कि साय को तेज रफ्तार गाड़ी का एक्सीडेंट कराकर मारने का प्लान था। इस पर साय ने ड्राइवर को आयोग के सचिव राघव चंद्रा को बताने कहा। चंद्रा ने पूरे मामले की जानकारी लेने के बाद दिल्ली पुलिस को शिकायत भेजी।
  • – बताया गया है कि शिकायत के बाद से ड्राइवर तो दफ्तर से गायब है पर अन्वेषण अधिकारी ड्यूटी पर आ रहे हैं। इधर सूत्रों के मुताबिक सारा मामला आयोग में नियुक्त कुछ प्रायवेट सलाहकार और अमले के बीच चल रही खींचतान का है।
  • – आयोग के रोजमर्रा के कामों में सलाहकारों के बढ़ते हस्तक्षेप की पीएमओ तक में शिकायत की जा चुकी है। साय ने धमकी की पुष्टि की। लेकिन इस बारे में अधिक जानकारी देने से बचते रहे। इतना ही कहा कि धमकी मिली है। यह बता नहीं पाए कि धमकी किसलिए दी गई? बाद में मामला रफा-दफा कर दिया गया।
नंद कुमार साय सादगी के अंदाज में रहते हैं।

नंद कुमार साय सादगी के अंदाज में रहते हैं।

कांग्रेस के खिलाफ कसम ली थी, अब कांग्रेस में शामिल
नंद कुमार साय पिछले महीने रायपुर में भाजपा के विधानसभा घेराव कार्यक्रम में शामिल हुए थे। इस दौरान मंच से राज्यसभा के पूर्व सांसद रामविचार नेताम ने कहा कि हमारे नेता साय जी मंच पर हैं इन्होंने कसम ली है कि जब तक कांग्रेस सरकार को उखाड़ नहीं फेकेंगे, बाल नहीं कटवाएंगे। साय ने भी हां में इशारा करते हुए जनता का अभिवादन स्वीकारा। अब साय ने भाजपा छोड़ दी है कि कांग्रेस का हाथ थाम रहे हैं, अब तक अपनी कसमों और प्रतिज्ञाओं को साय पूरा करते रहे हैं, मगर भाजपा के साथ जारी सियासी सफर में ली गई ये आखिरी कसम कैसे पूरी होगी, इसकी चर्चा हर कोई आज कर रहा है।




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