वॉशिंगटन: अमेरिका भारत के साथ अपने संबंधों को बढ़ाने की कोशिशों में जुटा हुआ है। इसके लिए वह एक सैन्य सहायता पैकेज तैयार कर रहा है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय डिफेंस सेक्टर की रूस पर निर्भरता कम करने के लिए अमेरिकी प्रेसिडेंट जो बाइडेन भारत को 500 मिलियन डॉलर (3,877 करोड़) की सैन्य सहायता देने वाले हैं।
एक अधिकारी ने कहा- हालांकि, यह साफ नहीं है कि इस डील की घोषणा कब की जाएगी या फिर इसमें किन हथियारों को शामिल किया जाएगा। यह राष्ट्रपति जो बाइडेन के भारत को सिक्योरिटी पार्टनर बनाने के प्रयासों का हिस्सा है।
अप्रैल में हुई एक वर्चुअल बैठक से पहले बाइडेन ने कहा था कि वे भारत के साथ संबंधों को और गहरा करने के लिए PM मोदी से 24 मई को क्वॉड समिट में मिलने के लिए उत्साहित हैं।
भारत का विश्वास जीतना चाहता है अमेरिका
अधिकारी ने कहा- अमेरिका चाहता है कि भारत उसे एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में देखे। अमेरिकी प्रशासन फ्रांस सहित अन्य देशों के साथ ये सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के पास जरूरी हथियार हों। उन्होंने कहा कि भारत पहले से ही रूस से हटकर अपने मिलिट्री प्लेटफार्मों में विविधता ला रहा है, लेकिन अमेरिका इसे तेजी से करने में मदद करना चाहता है।
क्या है चुनौतियां?
अधिकारी ने कहा- बड़ी चुनौती यह रहेगी कि भारत को फाइटर जेट्स, नौसेना पोत और युद्ध टैंक कैसे मुहैया करवाए जाएं, क्योंकि जिस सैन्य पैकेज की बात हो रही है उसमें इस तरह के उपकरणों को शामिल करना कठिन है। जेट्स, पोत, टैंक देने के लिए कई अरब डॉलर की आवश्यकता होगी। फिलहाल ये पैकेज सैन्य मदद देने के लिए पहला कदम है। भारत ने इसे लेकर कोई टिप्पणी नहीं की है।
भारत रूसी हथियारों का सबसे बड़ा खरीददार
वर्तमान में भारतीय सशस्त्र बलों के 49% हथियार रूस से आते हैं और भारत इनके कल-पुर्जों के लिए रूस पर निर्भर है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक, पिछले 10 सालों में भारत ने करीब 4 अरब डॉलर के हथियार अमेरिका से खरीदे और 25 अरब डॉलर के हथियार रूस से खरीदे। यही वजह है कि UNSC में भारत ने रूस-यूक्रेन जंग पर न्यूट्रल रहा है।
पहले भारत के रुख से नाराज था अमेरिका
अमेरिका ने रूस-यूक्रेन जंग के बाद से रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए, लेकिन भारत ने अपने कदम पीछे रखे। प्रतिबंध लगाने की बजाय डिस्काउंट पर रूसी तेल का आयात जारी रखा। इसे देखते हुए अमेरिका भारत से निराश था। अमेरिका ने भारत को रूस के साथ संबंध सीमित करने की धमकी भी दी थी। US प्रेसिडेंट ने अमेरिका से हथियार लेने का प्रस्ताव भी रखा था।
भारत के साथ संबंधों को दांव पर नहीं लगाएगा अमेरिका
भारत दबाव के बावजूद अंतरराष्ट्रीय मामलों में अपनी राह पर चलता है। इतिहास इसका गवाह है। अमेरिका, भारत के साथ अपने 20 साल पुराने संबंधों को दांव पर नहीं लगाएगा। भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन को काउंटर करने के लिए अमेरिका भारत को बड़े विकल्प के तौर पर देखता है।