Saturday, May 18, 2024
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छत्तीसगढ़ में यहां अंधविश्वास के कारण नहीं मनाते होली: खरहरी गांव के बच्चों को नहीं पता होली क्या है, न रंग खेला न पिचकारी देखी; 100 साल से नहीं मना त्योहार..

100 साल से ज्यादा समय से अंधविश्वास के कारण खरहरी गांव के लोग होली नहीं मनाते। ग्रामीणों का मानना है कि अगर गांव में रंग खेला तो बीमारी फैल जाएगी और दहन की तो आग फैल जाएगी।

  • ग्रामीण मानते हैं कि रंगों से होली खेली तो फैल जाएगी बीमारी, दहन की तो आग फैल जाएगी

रायपुर/ होली के नाम सुनते ही रंग-गुलाल, पिचकारी और फाग-गीत आंखों के सामने दिखाई देने लगते हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ में कोरबा जिले के खरहरी गांव में ऐसा कुछ नहीं होता है। यहां के बच्चों को दीवाली, रक्षाबंधन, नवरात्रि-दशहरा तो धूमधाम से मनाते हैं। लेकिन होली क्या है, उन्हें नहीं पता है। यहां के 8 से 10 साल तक के बच्चों ने न कभी रंग-गुलाल से होली खेली और न ही पिचकारी चलाई।

इतना ही नहीं, इस गांव में रहने वाली तीन पीढ़ियों के लोगों का यही हाल है। इस गांव में न तो होलिका दहन होता है और न ही अगले दिन रंग खेलते हैं। न नाच न फाग गीत। 100 साल से ज्यादा समय से अंधविश्वास के कारण यहां नहीं मनाते हैं। गांववालों का मानना है कि अगर गांव में रंग खेला गया तो बीमारी या महामारी फैल जाएगी। होलिका दहन करने पर गांव में आग लग जाएगी।

इस धारणा से ही यहां के लोगों के जीवन से होली त्योहार पूरी तरह से गायब है। जब भास्कर टीम खरहरी गांव पहुंची तो 65-70 साल के बुजुर्ग से लेकर युवा व बच्चे घरों के सामने बैठे थे, बच्चे खेलते दिखे। सबसे उम्रदराज 70 साल के मेहतर सिंह कंवर बताते हैं कि उनके पैदा होने के पहले से यहां होली नहीं खेलते हैं। उन्होंने बचपन में देखा-सुना था कि गांव के व्यक्ति ने होली मनाई तो उसके शरीर में बड़े-बड़े दाने आ गए, ऐसा पहले भी हो चुका है। इसलिए कोई भी नहीं खेलता है।

इसी कारण गांव की दुकानों में भी न गुलाल-रंग बिकता है और न ही पिचकारी लटकी हुई दिखाई देती हैं। छत्तीसगढ़ अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्रा ने बताया कि ग्रामीण सिर्फ अंधविश्वास के कारण ऐसी परंपरा निभा रहे हैं। लोगों को जागरूक करने के लिए समिति गांव जाएगी और होली के बारे में बताकर जागरूक करेगी।

गांव में शादी करके आई बहुओं ने भी कभी नहीं खेली होली

गांव में शादी करके बहू बनकर आई 28 साल की फूलेश्वरी बाई यादव ने बताया कि अपने गांव में शादी के पहले तक होली में रंग खेलती थी। लेकिन यहां शादी के बाद से ही होली नहीं मनाई। दूसरे जगह ब्याही गई बेटियां वहां होली खेलती हैं। लेकिन यहां आकर उस दिन नहीं खेल सकती हैं। हालांकि, त्योहार वाले दिन घरों में पकवान बनते हैं।

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