*पर्यावरण मंत्रालय ने हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खदान को क्लीयरेंस दे दिया है
रायपुर: केंद्रीय वन, पर्यावरण मंत्रालय ने हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खदान को क्लीयरेंस दे दिया है। अब यहां कोयला खदान के लिए 2 गांव पूरी तरह से और 3 गांवों को आंशिक रूप से विस्थापित होने हैं। इस प्रक्रिया में 841 हेक्टेयर क्षेत्रफल में लगभग 1 लाख पेड़ों का विनाश तय है। इसी जंगल और गांवों को बचाने के लिए सरगुजा-कोरबा के आदिवासी ग्रामीण 13 अक्टूबर को 300 किलोमीटर पैदल चलकर राजभवन और मुख्यमंत्री निवास पहुंचे थे।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला का कहना है, परसा खदान की वन भूमि डायवर्सन की प्रक्रिया फर्जी ग्राम सभा दस्तावेजों पर आधारित है। इसकी जांच और कार्रवाई की मांग को लेकर हसदेव के लोगों का आंदोलन लगातार जारी है। फर्जी ग्राम सभा दस्तावेज को रद्द करने और दोषी अधिकारीयों पर कार्रवाई की मांग लगातार 2018 से हसदेव के आदिवासी समुदाय आंदोलन करते आ रहे हैं। इन मांगों को लेकर 2019 में ग्राम फत्तेपुर में हसदेव अरण्य के लोगों ने लगातार 73 दिनों तक धरना प्रदर्शन किया था।
आज तक उन शिकायतों पर न ही कलेक्टर द्वारा कोई कार्रवाई हुई है और न ही लिखित शिकायत के बावजूद कोई भी एफआईआर दर्ज की गई। ग्रामीणों ने 14 अक्टूबर को राज्यपाल और मुख्यमंत्री से मुलाकात कर अपनी मांग रखी। इसके बावजूद केंद्र सरकार ने सभी प्रक्रियाओं को दरकिनार कर गैरकानूनी रूप से यह वन स्वीकृति जारी की है। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने इस वन स्वीकृति को रद्द करने की मांग की है।
सरगुजा-कोरबा के सैकड़ों आदिवासी महिला-पुरुष इस जंगल को संरक्षित करने की मांग को लेकर राजधानी तक पैदल आए थे।
2019 में जारी हुई थी स्टेज-1 स्वीकृति
राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम के लिए परसा कोयला खदान की स्टेज-1 स्वीकृति 13 फरवरी 2019 को जारी हुई थी। इस पर ग्रामीणों ने अपनी आपत्तियां लगाई थीं। तय प्रावधानों के मुताबिक किसी भी परियोजना हेतु वन स्वीकृति के पूर्व “वनाधिकार मान्यता कानून” के तहत वनाधिकारों की मान्यता की प्रक्रिया की समाप्ति और ग्रामसभा की लिखित सहमति आवश्यक है। ग्रामीणों का सपष्ट कहना है कि आज भी उनके वनाधिकार के दावे लंबित है और 24 जनवरी 2018 ग्राम हरिहरपुर एवं 27 जनवरी 2018 साल्ही एवं 26 अगस्त 2017 को फतेहपुर गांव में दिखाई गई ग्रामसभाए फर्जी थी और इसकी जाँच के लिए मुख्यमंत्री और राज्यपाल को ज्ञापन सोंपे गए हैं।
राज्यपाल अनुसूईया उइके ने ग्रामीणों के अधिकारों की रक्षा का वादा किया था।
कभी खनन के लिए प्रतिबंधित इलाका था
घने वनों और जैव विविधता से भरपूर हसदेव अरण्य का इलाका छत्तीसगढ़ का फेफड़ा कहा जाता है। 2009 में इसे नो गो एरिया घोषित किया गया था, यानी इस क्षेत्र में खनन गतिविधियों को अनुमति नहीं थी। साल 2012 में जब परसा ईस्ट केते बासन खनन परियोजना को स्टेज-II की वन स्वीकृति जारी की गई थी तब उसमे भी यह शर्त थी कि हसदेव में किसी भी नई कोयला खदान को अनुमति नहीं दी जाएगी।