Sunday, May 19, 2024
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BCC News 24: CG न्यूज़- ED को केस चलाने सरकार की अनुमति जरूरी नहीं.. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा-आरोपी EE के सहयोगियों पर केस दर्ज करना गलत नहीं; याचिका खारिज

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा है कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) को केस चलाने के लिए शासन की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है। इसके साथ ही कोर्ट ने भ्रष्टाचार के केस में फंसे जल संसाधन विभाग के कार्यपालन अभियंता (EE) आलोक अग्रवाल के सह आरोपियों की याचिका को खारिज कर दिया है। आरोपियों ने CRPC की धारा 197 का पालन नहीं करने को लेकर पुनरीक्षण याचिका दायर की थी।

बिलासपुर के खारंग डिवीजन के कार्यपालन अभियंता रहे आलोक अग्रवाल और उनके सहयोगियों के खिलाफ EOW और ACB ने 2018 में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया था। इसी दौरान 2018 में ही ED ने मनी लॉन्ड्रिंग के तहत केस दर्ज किया था। जांच के बाद ED ने रायपुर की विशेष न्यायालय में चालान पेश किया था।

ED की कार्रवाई को चुनौती देते हुए केस के सह आरोपी विनोद मल्लेवार, अबरार बेग, विजय कुमार सिंह ठाकुर, गोविंद राम देवांगन, बीडीएस नरवरिया व अन्य ने हाईकोर्ट में आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की थी। इसमें कहा गया था कि ED इसे ने उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग केस में शामिल करने से पहले CRPC की धारा 197 का पालन नहीं किया है। न ही ED ने उनके खिलाफ केस चलाने के लिए शासन से अनुमति ली है।

लोक सेवक हैं, इसलिए जरूरी है अनुमति
याचिकाकर्ताओं के अधविक्ता ने तर्क दिया कि चूंकि, वे सभी लोक सेवक हैं। इसलिए कानून के प्रावधान के अनुसार उनके खिलाफ केस दर्ज करने के लिए धारा 197 के तहत शासन से अनुमति लेना आवश्यक है। EOW व ACB ने आय से अधिक संपत्ति व भ्रष्टाचार के केस में उन्हें आरोपी नहीं बनाया है और न ही उनके खिलाफ कोई कार्रवाई की है। ऐसे में ED की ओर से उनके खिलाफ केस दर्ज करना गलत है।

ED ने कहा- अफसरों से बरामद हुई थी रकम
सुनवाई के दौरान ED की तरफ से कहा गया कि जिन सह आरोपियों पर मामला दर्ज किया गया है वे सभी EE आलोक अग्रवाल के अधीनस्थ अधिकारी थे। आर्थिक अपराध शाखा ने अग्रवाल और उनके करीबियों से करीब 7 करोड़ रुपए जब्त किए थे। जांच में पता चला कि राशि आलोक अग्रवाल की है। इन अधिकारियों ने अग्रवाल के कहने पर अपने घर में रकम रखी थी। मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज करने के लिए EOW व ACB ने अनुशंसा की थी।

करोड़ों रुपए हुए थे जब्त
हाईकोर्ट में ED ने बताया कि आरोपियों से 9 करोड़ 69 लाख 64 हजार 530 रुपए जब्त किया गया था। इसमें विभाग SDO विनोद मल्लेवार से 53 लाख 80 हजार रुपए, बीडीएस नरवरिया से 56 लाख 80 हजार रुपए, पवन अग्रवाल से 8 लाख 12 हजार 890 रुपए, मधु अग्रवाल से 34 लाख 7 हजार 500 रुपए, विजय कुमार सिंह से 85 लाख 59 हजार रुपए, अबरार बेग से 4 करोड़, 17 लाख, 97 हजार 940 रुपए, अभिश स्वामी से 2 करोड़ 44 लाख रुपए, आलोक कुमार अग्रवाल से 2 लाख 81 हजार रुपए, गोविंद राम देवांगन से 63 लाख 65 हजार रुपए और अल्का अग्रवाल से 2 लाख 81 हजार रुपए जब्त किया था।

फर्म बनाकर अवैध निवेश किया
ED ने यह भी बताया कि सह आरोपी पवन अग्रवाल मुख्य आरोपी आलोक अग्रवाल का का सगा भाई है। आलोक अग्रवाल की मिलीभगत से निविदाएं लीं। जल संसाधन विभाग में उनकी कंपनी मेसर्स महामाया डेवलपर और बिल्डर्स के नाम पर आलोक अग्रवाल ने अर्जित अपराध की आय को अवैध निवेश किया।

आलोक अग्रवाल के करीबी सह आरोपी अभिश स्वामी ने कंपनी खोलने और राशि इस्तेमाल करने में मदद की। सरगेश्वर कंस्ट्रक्शन कंपनी ने बहुत कम समय के भीतर कारोबार कई गुना बढ़ाया। जांच के दौरान व्यवस्था के संबंध में अभिष स्वामी ने संतोषजनक उत्तर नहीं दिया और न ही कंपनी खोलने के लिए मिली राशि व सुविधाओं के बारे में बताया।

भ्रष्टाचार का मामला दर्ज है
EOW व ACB ने 19 जनवरी 2015 को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1)(ई), 13(2) के तहत अपराध दर्ज करने के साथ ही धारा 109, 120बी, 420, 467, 468, 471 के तहत केस दर्ज किया था। इसमें आलोक कुमार अग्रवाल, पवन कुमार अग्रवाल, राधेश्याम अग्रवाल और अभिश स्वामी व अन्य को आरोपी बनाया गया था। बाद में आरोपियों के खिलाफ धारा 173 के तहत जांच व अंतिम रिपोर्ट में आलोक अग्रवाल, पवन कुमार अग्रवाल, अभिश स्वामी, राधेश्याम अग्रवाल के साथ ही पुष्पा अग्रवाल और अलका अग्रवाल का नाम दर्ज किया गया था।

हाईकोर्ट ने कहा- ED को अनुमति लेने की जरूरत नहीं
हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद अपने फैसले में कहा है कि याचिकाकर्ताओं के पास से राशि जब्त की गई है। इसलिए मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में आपराधिक अभियोजन के लिए अनुमति लेने की आवश्यकता और प्रावधान नहीं है। मामले में EOW ने साक्ष्य दर्ज किए हैं। रकम उनसे जब्त हुई है, इसलिए उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आरोपी बनाया जाना गलत नहीं है। हाईकोर्ट ने याचिकाओं को खारिज करते विचारण न्यायालय को कहा है कि प्रकरण के गुण-दोष के आधार पर मामले पर कानून के अनुसार निर्णय लें।

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