Sunday, May 5, 2024
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बोधघाट परियोजना का विरोध: दंतेवाड़ा में 5 जिलों के 56 गांव के आदिवासी और ग्रामीण जुटे; कहा- प्राण देंगे, लेकिन बांध के लिए जमीन नहीं…

छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक बार फिर बोधघाट परियोजना का विरोध शुरू हो गया है। इसको लेकर 5 जिलों का आदिवासी समाज बीजापुर-दंतेवाड़ा बार्डर पर तीन दिन परिचर्चा करेंगे। इसके बाद आगे की रणनीति तय होगी।

  • हितलकूडूम गांव में परियोजना के विरोध में तीन दिन होगी परिचर्चा, इसमें जो तय होगा, उस पर आगे लिया जाएगा निर्णय
  • जगदलपुर से करीब 100 किमी दूर 42 साल पहले रखी गई थी बांध की आधारशिला, फिर विरोध के चलते बंद करना पड़ा था

छत्तीसगढ़ में एक बार फिर बोधघाट बांध परियोजना (पावर प्रोजेक्ट) का विरोध शुरू हो गया है। दंतेवाड़ा की सीमा से लगे गांव में रविवार से ही 5 जिलों के 56 गांवों के आदिवासी और ग्रामीण एकजुट हो गए हैं। आदिवासियों का कहना है कि हम प्राण दे देंगे, लेकिन जमीन नहीं देंगे। यह बांध हमारे खेत और घर को बर्बाद कर देगा। जगदलपुर से करीब 100 किमी दूर इंद्रावती नदी पर बांध बनाया जाना है। हालांकि 8 साल पहले निर्माण कार्य बंद करना पड़ा था।

मां दंतेश्वरी जन जाति हित रक्षा समिति की ओर से ग्रामीण बीजापुर के हितलकूडूम गांव में चर्चा कर रहे हैं।

मां दंतेश्वरी जन जाति हित रक्षा समिति की ओर से ग्रामीण बीजापुर के हितलकूडूम गांव में चर्चा कर रहे हैं।

मां दंतेश्वरी जनजाति हित रक्षा समिति की ओर से ग्रामीण बीजापुर के हितलकूडूम गांव में चर्चा कर रहे हैं। तीन दिन चलने वाली इस परिचर्चा के दौरान जो निर्णय होगा, उसके अनुसार आगे की रणनीति तय की जाएगी। इसमें दंतेवाड़ा सहित बस्तर, कोंडागांव, नारायणपुर और बीजापुर जिले के हजारों ग्रामीण शामिल हो रहे हैं। पहले दिन ही करीब 1 हजार ग्रामीण परियोजना का विरोध करने परिचर्चा में शामिल हुए हैं।

प्रभावित गांवों में बोर नहीं, बारिश के पानी से खेती, ऐसी जमीन नहीं मिलेगी
समिति के अध्यक्ष सुखमन कश्यप बताते हैं कि बांध के विरोध में हम राज्यपाल, मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष सब से मिले थे। दंतेवाड़ा में आकर CM ने कहा है, बोधघाट बांध किसी के विरोध में नहीं रुकेगा। हम मुआवजा नहीं देंगे, जमीन देंगे। सुखमन कहते हैं, पर इससे 56 गांवों के खेती को नुकसान होगा। वैसी जमीन नहीं मिलेगी। इसलिए हम जाना नहीं चाहते। यहां बोर नहीं है, बारिश से ही खेती होती है। 12 साल में होने वाला देवी-देवता पूजन भी करेंगे।

परिचर्चा के दौरान ही आदिवासी समाज 12 साल में होने वाला देवी-देवता पूजन भी करेंगे। मान्यता है कि इस दिन नए राजा का जन्म होता है।

परिचर्चा के दौरान ही आदिवासी समाज 12 साल में होने वाला देवी-देवता पूजन भी करेंगे। मान्यता है कि इस दिन नए राजा का जन्म होता है।

परियोजना के बारे में वो सब कुछ, जो आप जानना चाहेंगे

  • जगदलपुर से करीब 100 किमी दूर इंद्रावती नदी पर पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने 1979 में पावर प्रोजेक्ट की आधारशिला रखी थी।
  • गीदम से करीब 20 किमी अंदर बारसूर में बोगदा पहाड़ के पास यह बांध बनना है।
  • नदी के दोनों तरफ के दो पहाड़ों को जोड़कर 855 मीटर लंबा और 90 मीटर ऊंचा बांध बनाया जाना है।
  • 1950 में इंद्रावती नदी पर बोधघाट जल विद्युत परियोजना की कल्पना की गई थी।
  • फिर 1979 में विज्ञान और तकनीकी विभाग से पर्यावरण के लिए मंजूरी मिली।
  • 1983 में भारत सरकार ने विश्व बैंक से आर्थिक मदद के लिए प्रस्ताव भेजा।
  • 1984 में वाशिंगटन में विश्व बैंक और भारत सरकार के बीच आधिकारिक चर्चा हुई।
  • 1985 में विश्व बैंक ने 300.4 मिलियन डॉलर (करीब 360 करोड़) सहायता की मंजूरी दी।
  • 1986 में तत्कालीन केंद्रीय वन सचिव टीएन शेषन ने पर्यावरण के संबंध में आपत्तियां उठाईं।
  • 1988 में विश्व बैंक ने फॉरेस्ट अड़ंगे के कारण वित्तीय सहायता स्थगित कर दी और काम बंद कर दिया गया।
  • 2004 में काम फिर शुरू, लेकिन नक्सलियों के प्रभाव क्षेत्र में होने के कारण आगे नहीं बढ़ सका।
  • 2014 में बेंगलुरु की कंपनी ने काम शुरू किया, लेकिन स्थानीय विरोध के चलते वह भी भाग गई।

50 लाख से ज्यादा पेड़ खत्म होंगे, 10 हजार हेक्टेयर से ज्यादा वन और निजी भूमि प्रभावित होगी
पूर्व में हुए सर्वे के अनुसार, प्रोजेक्ट से 5407 हेक्टेयर वन भूमि, 5010 हेक्टेयर निजी भूमि और 3068 हेक्टेयर राजस्व भूमि मिलाकर 13783 हेक्टेयर भूमि प्रभावित हो रही है। 56 गांव पूरी तरह प्रभावित होंगे। इस प्रोजेक्ट की सबसे बड़ी दिक्कत यह भी है कि डूबान क्षेत्र और बांध को मिलाकर 50 लाख से ज्यादा पेड़ खत्म होंगे। इनमें साल, सागौन, साजा, बीजा, शीशम सहित दुर्लभ जड़ी-बूटियां शामिल हैं। हालांकि इसकी भरपाई के लिए अलग से प्रोजेक्ट बनाकर काम करने की भी बात कही गई है।

इस्तेमाल होगा इंद्रावती का पानी, 500 मेगावॉट होगा बिजली का उत्पादन
इंद्रावती बस्तर की सबसे प्रमुख नदी है। यह ओडिशा में करीब 174 किमी बहने के बाद छत्तीसगढ़ पहुंचती है। बस्तर में यह 234 किमी बहती है। पहले हुए सर्वे के मुताबिक, इंद्रावती नदी सालाना 290 TMC पानी गोदावरी नदी में छोड़ती है। इस पानी का कोई उपयोग न तो कृषि के लिए हो रहा है और न बिजली उत्पादन के लिए। पानी को रोकने के लिए बांध सिर्फ आधा दर्जन जगहों पर छोटे-छोटे एनीकट हैं। इस प्रोजेक्ट से इंद्रावती नदी के व्यर्थ बह रहे पानी का उपयोग होगा और 500 मेगावॉट बिजली का उत्पादन भी।

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