बीकानेर: सिनी…ए सिनी…। उठ ना…। भूख लगी…। दूध पी ले…। चेहरे पर चिंता। आंखों में आंसू। रूंधे गले से बार-बार सुकूरमुनी अपनी डेढ़ साल की बेटी को सहला रही थी। कभी प्यार से चूमती तो कभी सीने से चिपका लेती। बार-बार उसके दिल की घड़कन को कान लगाकर सुनती। सिनी इस दुनिया में नहीं रही, उसकी ममता इस सच को स्वीकार नहीं कर पा रही थी। यह वाकया बीकानेर रेलवे स्टेशन के प्लेट फाॅर्म 1 एक के पैदल पुल का है। एक महिला अपनी बेटी के शव को लेकर 8 घंटे से विलाप कर रही थी।
झारखंड के चाईबासा आदिवासी इलाके की रहने वाली सुकूरमुनी गुवाहाटी ट्रेन से सुबह करीब 6 बजे यहां पहुंची। गर्मी के कारण भूख, प्यास से मां-बेटी व्याकुल थे। स्टेशन पर सार्वजनिक स्टैंड से पानी तो मिल गया, लेकिन खाने को कुछ नहीं मिला। खरीदने के लिए पैसा भी नहीं था। बच्ची कब चल बसी उसे पता ही नहीं चला। करीब एक घंटे तक जब बच्ची में कोई हरकत नहीं हुई तो सुकूमुनी ने उसे पुकारा। हिलाया- ढुलाया।
बच्ची का मुंह खुला था। आंखें स्थिर थीं। बेटी की जब धड़कनें सुनाई नहीं दी तो वह समझ गई कि बेटी संसार से विदा हो गई। वही उसके जीने का सहारा थी। वह पहली बार बीकानेर आई। कोई जान-पहचान भी नहीं। कहां बेटी का अंतिम संस्कार करे। कैसे करे। किससे मदद मांगे। ऐसे ही अनगिनत सवाल उसके दिमाग में घूम रहे थे। करीब 8 घंटे बाद समाज सेवियों की नजर उस पर पड़ी तो बच्ची का अंतिम संस्कार हुआ।