Sunday, April 28, 2024
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BCC News 24: MBBS के लिए विदेश क्यों जाते हैं छात्र?.. हर साल 2500 स्टूडेंट्स MBBS करने विदेश जा रहे क्योंकि वहां 25 लाख में हो जाती है डिग्री, जबकि यहां पर एक करोड़ रुपए खर्चा

नईदिल्ली: रूस और यूक्रेन के बीच चल रही जंग के कारण प्रदेश के एमबीबीएस स्टूडेंट्स इन दिनों वतन लौट रहे हैं। इनमें झुंझुनूं के वे छात्र-छात्राएं भी हैं जो पिछले तीन-चार साल से यूक्रेन की अलग अलग मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे हैं। स्टूडेंट्स यूक्रेन जैसे देशों में ही एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए क्यों जाते हैं? इसके पीछे बड़ी वजह यूक्रेन जैसे देशों में पढ़ाई का खर्चा अपने देश की तुलना में कम होना है। यूक्रेन में महज 22 से 27 लाख रुपए में एमबीबीएस की डिग्री मिल जाती है। इसमें पूरे पांच साल की पढ़ाई और वहां रहने का समस्त खर्च शामिल है।

जबकि अपने ही देश में किसी निजी कॉलेज से डिग्री करने पर करीब एक करोड़ रुपए खर्च आता है। इसीलिए डाॅक्टर बनने की चाह रखने वाले युवा मेडिकल की पढ़ाई के लिए घर से 5 हजार किलाेमीटर दूर विदेशों में जाकर पढ़ रहे हैं। बीते 10 सालाें में विदेश से डाॅक्टरी पढ़ने वाले विद्यार्थियाें की संख्या बढ़ी है। इस साल करीब 2500 से ज्यादा विद्यार्थी मेडिकल की पढ़ाई के लिए विदेश गए हैं।

जिले से सर्वाधिक मेडिकल स्टूडेंट्स विघटित साेवियत संघ के विभिन्न देशाें के 100 से ज्यादा मेडिकल काॅलेजाें में एमबीबीएस कर रहे हैं। इसके बाद चाइना, नेपाल और बांग्लादेश के विभिन्न मेडिकल काॅलेजाें में भी डाॅक्टरी की पढ़ाई कर रहे हैं। यूक्रेन से लौटकर आए छात्रों से बातचीत में सामने आया कि 1996 से पढ़ाई के लिए विदेश जाने की शुरुआत हुई। बीते एक दशक में ये संख्या 10 गुना से ज्यादा हाे गई है।

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के 5 जून 2019 के नया नियम लागू करने और पुराने नियमाें में संशाेधन के बाद भी ये संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। यूक्रेन से आए पिलानी के छात्र कुलदीप का कहना है कि वहां बिना एंट्रेस एग्जाम प्रवेश मिल जाता है।

पूर्व साेवियत संघ के 10 देशाें के 100 मेडिकल काॅलेज जिले के स्टूडेंट्स की पहली पसंद

विदेश से एमबीबीएस करने वालों को देनी होती है एनएमसी परीक्षा
जिले के मेडिकल विद्यार्थियाें की बात करें ताे वे पूर्व साेवियत संघ के 10 देशाें में ज्यादा पढ़ने जाते हैं। इनमें तजाकिस्तान, तिर्गिस्तान, बेलारूस, यूक्रेन, जार्जिया, अजरबेजान, आर्मिनिया, कजाकिस्तान मेडिकल स्टूडेंट्स की पहली पंसद है। इन देशाें में हर साल जिले से लगभग 500 से 700 विद्यार्थी पढ़ने जा रहे हैं। यहां हर साल मेडिकल की पढ़ाई के लिए 5 से 6 लाख रुपए खर्च करते हैं। वही रूस के विभिन्न मेडिकल काॅलेजाें में भी 300 से 500 विद्यार्थी एडमिशन लेने लगे हैं। यहां भी लगभग इतना ही खर्च आ रहा है। लेकिन इनमें से कई देशाें में 5 साल में एमबीबीएस पूरी हाे रही है। ताे कई देशाें में छह साल का समय लग रहा है।

काेराेना से पहले 2017 से 2019 के बीच जिले के स्टूडेंट्स में चीन से एमबीबीएस करने की हाेड़ थी। लेकिन 2020 में काेराेना आने के बाद इन बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई करनी पड़ रही है। ऐसे में बीते दाे साल में चीन जाने वाले विद्यार्थियाें की संख्या में कमी आई है। जिले से हर साल से 150 से ज्यादा विद्यार्थी चीन की 54 मेडिकल काॅलेजाें में एडमिशन ले रहे हैं। यहां भी हर साल 5 से 6 लाख रुपए का खर्च हाे रहा है। अपने देश के जैसा माहाैल हाेने के कारण से नेपाल और बांग्लादेश के मेडिकल काॅलेजाें में भी एडमिशन लेने लगे हैं।

जानिए, वे 2 कारण जिनकी वजह से विदेश में जाते हैं छात्र

  • भारत की अपेक्षा यूक्रेन, किग्रिस्तान, चीन, उजेबेकिस्तान, कजाकिस्तान में मेडिकल की पढाई पर 20 से 25 लाख ही खर्च होते हैं। यानी अपने देश से सस्ती पढ़ाई है।
  • जबकि हमारे यहां एक कराेड़ रुपए से अधिक खर्चा हाेता है।
  • विदेशों में मेडिकल सीटें अधिक हैं। वहां सिर्फ नीट क्वालीफाई करने वाले को प्रवेश मिल जाता है। ज्यादा परेशानी भी नहीं है। इसलिए हजाराें छात्र मेडिकल के लिए जाते हैं।
  • यहां नीट में रैंक के आधार पर प्रवेश होता है। कॉलेजों में सीटें कम होती हैं।

प्रदेश में 24 मेडिकल काॅलेजों में 4500 को ही प्रवेश
प्रदेश में 24 मेडिकल काॅलेज हैं। जिनमें आरयूएचएस के अधीन 18 मेडिकल काॅलेज हैं। छह सरकारी, एक आरयूएचएस, साेसाइटी के आठ और निजी तीन मेडिकल काॅलेज हैं। वही छह डिम्ड विश्वविद्यालय के मेडिकल काॅलेज हैं। इनमें से छह सरकारी मेडिकल काॅलेज उदयपुर, काेटा, जयपुर, अजमेर, जाेधपुर और बीकानेर के मेडिकल काॅलेजाें में मेरिट के आधार पर एडमिशन हाेते हैं। साेसाइटी के माध्यम से चल रही मेडिकल काॅलेजाें में 50 फीसदी सीटें मेरिट और 50 फीसदी मैनेजमेंट और एनआरआई काेटे की हाेती हैं। एक माेटे अनुमान के ताैर लगभग साढ़े 4 हजार मेडिकल सीटें हाेती है।

एक्सपर्ट व्यू, निजी कॉलेजों की फीस तय हो

  • देश में सरकारी सीटें कम होने के कारण स्टूडेंट्स विदेश जा रहे हैं। इसलिए यहां के निजी कॉलेजों में फीस तय करने के लिए सरकार को रेगुलेशन एक्ट लाना चाहिए। ताकि मनमानी फीस पर कंट्रोल किया जा सके। यह वर्तमान में बहुत अधिक जरूरी है। – डाॅ. लालचंद ढाका, सचिव, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन झुंझुनूं
  • शेखावाटी से विदेश में मेडिकल पढ़ाई के लिए जाने के पीछे विद्यार्थी दाे बड़ी वजह मानते हैं। इनमें पहली ये कि विदेश के कई देशाें में इंडिया की तुलना में डाॅक्टरी की पढ़ाई सस्ती हाेती है। इसके साथ ही वहां जल्दी व आसानी से मेडिकल काॅलेज में एडमिशन हाे जाता है। – डाॅ. केके वर्मा, प्राचार्य सीकर मेडिकल काॅलेज

फैक्ट : प्रदेश में हर साल दो लाख स्टूडेंट्स नीट देते हैं। इनमें 25% यानी 50 हजार मेडिकल के प्रति समर्पित होते हैं। इनमें से सिर्फ 8 से 10 हजार को ही सरकारी कॉलेज मिलती है। बाकी विदेश जाते हैं।

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