Sunday, April 28, 2024
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CG के DGP का इंटरव्यू: बोले- नक्सलवाद के खात्मे के लिए बातचीत के रास्ते खुले, केंद्र- राज्य की भी यही मंशा; प्रभावित लोगों की आर्थिक मदद भी कर रहे….

बस्तर में नक्सलियों के बढ़ते सरेंडर और भीतरी इलाकों में फोर्स की घुसपैठ से हालात बदल रहे हैं। साथ ही सरकार के लोन वर्राटू अभियान से भी नक्सली मुख्यधार में लौट रहे हैं। इन मुद्दों पर प्रदेश के डीजीपी डीएम अवस्थी से भास्कर ने विस्तृत चर्चा की।

उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खात्मे के लिए राज्य सरकार ने सभी विकल्प खुले रखे हैं। राज्य ही नहीं, बल्कि केंद्र सरकार की भी यही मंशा है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्र के लोग भी विकास की मुख्यधारा से जुड़ें। प्रस्तुत है बातचीत के अंश:-

दंतेवाड़ा पुलिस के सर्वे में यह बात सामने आई है कि नक्सलियों के प्रभाव वाले गांवों में विकास के काम शुरू हो रहे हैं।
डीजीपी: सरकार नक्सल क्षेत्र के लोगों को मुख्य धारा से जोड़ने ऐसा वातावरण बनाना चाहती है, जिससे लोगों के मन में विश्वास हो। विकास के काम किए जाएं। सुरक्षा एजेंसियों ने कामकाज से लोगों का विश्वास जीता। दंतेवाड़ा पुलिस ने सर्वे के जरिए यह पता लगाया। बाकी जिलों में भी पुलिस लोगों की सुरक्षा के साथ विकास से जोड़ने के लिए काम कर रहे हैं।

लोन वर्राटू (घर वापस आइए) या पूना नर्कोम (नई सुबह) अभियान से किस तरह सफलता मिल रही है।
डीजीपी: पहले यह तय किया गया था कि नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन के साथ-साथ उनके सरेंडर की कोशिश और पुनर्वास की सुविधा दी जाएगी। दंतेवाड़ा में लोन वर्राटू या सुकमा में पूना नर्कोम इसी अभियान का हिस्सा है। इसमें पुलिस अपने काम के साथ-साथ शासन की योजनाओं को लोगों तक पहुंचाने में मदद कर रही है। बड़ी संख्या में नक्सलियों ने सरेंडर किया है।

बड़े नक्सली छत्तीसगढ़ के बजाय आंध्र या तेलंगाना में आत्मसमर्पण करते हैं। क्या यहां की नीति में कोई कमी है।
डीजीपी: प्रदेश की नक्सल पुनर्वास नीति अच्छी है। छत्तीसगढ़ के स्थानीय लोग जो नक्सल संगठन में बड़े पदों पर पहुंचे, वे यहां समर्पण करते हैं, लेकिन ज्यादातर बड़े पदों पर आंध्रप्रदेश और तेलंगाना के लोग हैं। यही वजह है कि वे अपने राज्य में समर्पण करना पसंद करते हैं। यहां भी दंतेवाड़ा का नक्सली दंतेवाड़ा में और सुकमा का नक्सली सुकमा में समर्पण करना पसंद करते हैं।

पुलिस ने जिस क्षेत्र पर कब्जा घोषित किया, वहां भी नक्सलियों ने बड़ी वारदातें की हैं। स्थाई व्यवस्था क्यों नहीं की जाती है।
डीजीपी: जहां पर सुरक्षा बलों ने स्थाई कैम्प बनाए हैं, वहां कभी ऐसी घटना सामने नहीं आई है। अस्थाई कैम्प की स्थिति में ऐसा हो सकता है। यह गुरिल्ला वार है, जहां पुलिस का दबाव बढ़ने पर नक्सली दूसरी तरफ जाते हैं और वहां वारदात करते हैं।

क्या नक्सलवाद की खात्मे के लिए अभी किस रणनीति पर काम चल रहा है।
डीजीपी: नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में लोगों को रोजगार देने की पहल की जा रही है। बस्तर फाइटर्स में नियुक्तियां की जाएंगी, जो स्थानीय लोगों के लिए है। इसी तरह लघु वनोपज की खरीदी की जा रही है। इस तरह आर्थिक रूप से सक्षम बनाने की कोशिश की जा रही है।

क्या नक्सलियों से बातचीत/सुलह का रास्ता खुला है।
डीजीपी: सीएम भूपेश बघेल ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया था कि नक्सलियों से बातचीत के रास्ते हमेशा खुले हैं। वे बिना शर्त के बातचीत के लिए सामने आएं।

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