रायपुर: कोरोना की दो लहर ने जिस बात की सबसे अधिक चिंता खड़ी की है, वह है अस्पतालों की कमी। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के चलते लोगों को काफी परेशानी हुई है। इस बात को ध्यान में रखते हुए छत्तीसगढ़ में सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में निजी अस्पताल खोलने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात है वह है स्वास्थ्य सेवा को उद्योग का दर्जा देने का फैसला। इसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पताल खोलने वाले डाक्टर या संस्थान को उद्योगों की तरह रियायतें दी जाएंगी।
संभवत: छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है जिसने स्वास्थ्य सेवा को उद्योग का दर्जा देने का फैसला किया है। रियायत देने के लिए राज्य को भौगोलिक दृष्टि से चार भागों में बांटा जा रहा है। ए, बी, सी और डी कैटेगरी में चार भागों में ए यानी अच्छे शहरी क्षेत्र। बी यानी अर्धशहरी क्षेत्र, सी यानी बड़े ग्रामीण क्षेत्र और डी यानी दूरदराज के ग्रामीण इलाके। इनमें सबसे अधिक सरकारी रियायत और अनुदान डी इलाके में अस्पताल खोलने वालों को दिया जाएगा।
इसी प्रकार सी कैटेगरी के गांवों को रियायतें दी जाएंगी। बी और ए कैटेगरी के क्षेत्रों को अपेक्षाकृत अनुदान और रियायतें कम मिलेंगी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देश पर उद्योग विभाग इसकी पूरी कार्ययोजना तैयार कर रहा है। इसके प्रथम चरण में राज्य में 50 अस्पताल खोले जाएंगे। इनमें दूरदराज के गांवों को प्राथमिकता दी जाएगी। ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हो सकें।
हर गांव में 30 से 40 बिस्तरों का अस्पताल खोला जाएगा ताकि वहां बुनियादी सुविधाओं की कमी ना हो। प्रारंभिक योजना के अनुसार अस्पताल में एक बिस्तर का इंतजाम करने पर औसतन 10 लाख रुपए खर्च होते हैं। प्रथम चरण के दो हजार बिस्तरों के अस्पतालों की स्थापना पर करीब 200 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। कोरोना की पहली और दूसरी लहर में इसी का सबसे अधिक संकट ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी ही थी।
उल्लेखनीय है कि नीति आयोग भी लगातार सरकार से कहता रहा है कि स्वास्थ्य सेवा को उद्योग का दर्जा देकर देश में स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ावा दिया जाए। पर इस पर अब तक केंद्र सरकार ने कोई फैसला नहीं किया है। छत्तीसगढ़ में चूंकि बड़े शहरों में ही स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हैं, इसलिए सरकार ने यहां के ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पताल खोलने को प्राथमिकता दी है।
ग्रामीणों की आय अधिक नहीं, इसलिए संचालन का भी खर्च दिया जाएगा
इस योजना का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यही है कि ग्रामीणों की आय अधिक नहीं होने के चलते अस्पतालों को मरीजों से खास आय नहीं होगी। इसलिए अस्पताल के स्थापना से लेकर उसके संचालन तक का खर्च सरकार के द्वारा दिया जाएगा। इसमें सरकारी योजनाओं के तहत जितना इलाज किया जाएगा, उसका आनुपातिक खर्च सरकार द्वारा दिया जाएगा।
रोजगार भी मिलेगा
एक आकलन के अनुसार 30 बिस्तरों वाले एक अस्पताल के खुलने से 80 लोगों को सीधे रोजगार मिलता है। इसके अलावा छोटे-छोटे बिजनेस और सहयोगी संस्थानों में लोगों को अलग रोजगार मिलता है। इस तरह निजी क्षेत्र का अस्पताल खुलने पर ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे।
शहरों पर दबाव कम होगा
कोरोना के दौर में हमने देखा है कि हर गांव से लोग सीधे रायपुर का रुख करते हैं। बिलासपुर और भिलाई जैसे शहरों के अस्पतालों में भी दबाव बढ़ता है। इस कारण हमारी कोशिश है कि गांवों में ही लोगों को अस्पताल मिल जाएं। इससे बड़े शहरों का दबाव कम होगा और गंभीर मरीजों को यहां रेफर किया जाएगा। इस योजना पर तत्काल काम शुरू किया जा रहा है।
-भूपेश बघेल, मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़